विशाखापट्टनम में दर्दनाक हादसा, अबतक 9 लोगों की मौत।
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विशाखापट्टनम
में हुआ स्टीरीन गैस रिसाव
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गैस से तीन
किलोमीटर तक का क्षेत्र हुआ प्रभावित
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जहरीली गैस
फैलने से मचा कोहराम
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एक बच्चे
समेत 9 लोगों की मौत,
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पास के
गांव कराए गए खाली
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पास के गांवों
से 3000 लोगों
को निकाला गया
विशाखापट्टनम गैस लीक हादसा, नौ लोगों की मौत
आंध्र
प्रदेश के विशाखापट्टनम में एक मल्टीनेशनल कंपनी के केमिकल प्लांट में जहरीली गैस
लीक होने की वजह से एक बच्चे समेत कई लोगों की जान चली गई.
जनिए क्या है पूरा मामला?
आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम के आरएस वेंकटपुरम गांव में एलजी
पॉलिमर इंडस्ट्री प्लांट से स्टीरीन (जहरीली गैस) गैस लीक होने लगी. घटना करीब
सुबह 3 बजे की है,
जब लोग अपने घरों में सो रहे थे. प्लांट से गैस रिसाव के बाद आस-पास के इलाकों में
लोगों का अचनाक दम घुटने लगा. जिसके बाद लोग बहार आये तो लोगों को सांस लेने के
साथ-साथ आंखों में जलन, शरीर पर लाल चकत्ते और उलटी जैसी दिक्कतें होने लगी. गैस
इतनी जहरीली थी कि उसकी गंध से लोग अचनाक बेहोश होकर गिरने लगे, मौके पर ही एक
बच्चे समेत 9 लोगों की मौत हो गई. कुछ घंटों के भीतर एक हजार से अधिक लोग इस
जहरीली गैस की चपेटे में आकर बीमार पड़ने लगें. जिसके बाद घटना की सूचना मिलने पर एंबुलेंस, फायर टेंडर
और पुलिस की टीम ने घटना स्थल पर पहुंच कर बचाव कार्य शुरु किया. जिसके लिए आपदा
प्रबंधन की टीम को भी लगा दिया गया. साथ ही मौके पर तकरीबन
200 लोगों को पास के किंग जॉर्ज अस्पताल में भर्ती
कराया गया. जिनमें से कई की हालत नाजुक बताई जा रही है. घटना के बाद आंध्र प्रदेश
के मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने घटना के बारे में पूरी जानकारी ली और
जिला कलेक्टर को निर्देश दिया कि प्रभावित लोगों को उचित इलाज मिले. जिसके बाद मुख्यमंत्री
वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने किंग जॉर्ज अस्पताल में पीड़ितों से मिलने पहुंचे.
पीड़ितों से मिलने के बाद मुख्यमंत्री मोहन रेड्डी ने गुरुवार
को विशाखापट्टनम गैस लीक हादसे में मारे गए नौ लोगों के परिवारों को एक-एक करोड़
रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की साथ ही गैस हादसे के चलते जिन लोगों का वेंटिलेटर पर इलाज चल रहा है उन
सभी लोगों को 10 लाख रुपए दिए जाएंगे. विशाखापट्टनम गैस रिसाव कांड के बाद प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय आपदा
प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों से बात की और विशाखापट्टनम गैस
रिसाव घटना की जानकारी ली, साथ ही प्रभावित क्षेत्र के सभी लोगों की सुरक्षा और
कुशलता की कामना की है. उन्होंने इस बारे में आपदा प्रबंधन अधिकारियों की
एक बैठक भी बुलाई, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी
मौजूद रहें. गौरतलब है की गैस रिसाव पर काबू पा लिया
गया है.
क्या है स्टीरीन गैस ?
विशाखापट्टनम
के आरएस वेंकटपुरम गांव में एलजी पॉलिमर इंडस्ट्री प्लांट में जिस गैस के लीक होने
से करीब 9 लोगों
की मौत हुई है उसका नाम स्टीरीन गैस है, दरअसल स्टीरीन गैस ऑक्सीजन के साथ आसानी से घुलने
वाली गैस है .इसके संपर्क में आने से फेफड़ों पर बुरा असर पड़ता है, आंखों में तेज
जलन, सीने में तकलीफ
की शिकायत, दिमाग और रीड़
की हड्डियों पर असर पड़ता है, ज्यादा समय के लिए शरीर में गैस रहे तो लीवर पर भी
प्रभाव पड़ता है. इस गैस के संपर्क में आने से व्यक्ति के नर्वस सिस्टम पर बहुत
अधिक प्रभाव पड़ता है. स्टीरीन गैस से 3 से चार किमी. तक का इलाका प्रभावित हुआ है आपको
बता दें की स्टीरीन गैस प्लास्टिक पेंट बनाने में काम आती है. यूएस नेशनल लाइब्रेरी
ऑफ मेडिसिन के अनुसार स्टीरीन का इस्तेमाल पॉलिस्टीरीन प्लास्टिक, फाइबर
ग्लास, रबड़ बनाने
में होता है. इसके अलावा पाइप बनाने, ऑटोमोबाइल पार्ट्स बनाने, प्रिंटिग और कॉपी मशीन, टोनर, फूड कंटेनर्स, पैकेजिंग
का सामान, जूतों, खिलौनों, फ्लोर
वैक्स, पॉलिश में
होता है. सिगरेट के धुएं और वाहनों के धुएं में भी स्टीरीन गैस होती है. कम
समय के लिए अगर इस गैस का रिसाव हो तो आंखों में जलन जैसे नतीजे सामने आते हैं, वहीं लंबे
समय तक गैस में रहने से यह बच्चों और बूढ़ों पर टॉक्सिक प्रभाव डालती है. स्टीरीन गैस
बच्चों और सांस के मरीजों के लिए बहुत खतरनाक है, विशाखापट्टनम में यह घटना होने के बाद लोग भोपाल त्रासदी को याद करने लगे हैं.
क्या
थी भोपाल गैस त्रासदी
भोपाल गैस
त्रासदी, भारतीय
इतिहास में दर्ज वो त्रासदी है जिसने चंद मिनटों में हजारों लोगों को मौत की नींद
सुला दिया था. आज भी अगर उस मंजर को याद करने बैठों तो लोगों के दिलों में एक दर्द
उतर आता है. आज भी उस त्रासदी की तस्वीरों को देखते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो
जाते है. आज के विशाखापट्टनम गैस लीक हादसे ने
लोगों के दिल में पहले की भोपाल गैस त्रासदी के जख्म ताजे कर दिए है. 33 साल पहले, 2 दिसंबर, 1984 की वो
काली रात है जब भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली कम से कम 30 टन
अत्यधिक जहरीले गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने हजारों लोगों की जान ले ली थीं. जिसके
बाद देखते ही देखते हजारों लोग इसका शिकार हो गए. ये ऐसी तबाही थी जो हवा के साथ घुलकर
लोगों की सांसों में घुल रही थी. जिस तरफ हवा ने रुख किया लोगों की मौतें होने
लगीं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार
लोग मारे गए थे. लेकिन गैर सरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना ज्यादा थी. 33 साल बाद भी इस त्रासदी का प्रभाव वहां देखा जाता है, जिसकी वजह से गैस
के संपर्क में आने वाले कई लोगों ने शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों को
जन्म दिया है. गौरतलब है कि इस गैस त्रासदी में पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए
थे, हजारों लोग की मौत मौके पर ही हो गई थी. जिंदा बचे लोग कैंसर जैसी गंभीर
बीमारी से जूझ रहे हैं. सिर्फ कैंसर ही एक अकेली बीमारी नहीं है, जिससे गैस
प्रभावित लोग जूझ रहे हैं, ऐसी सैकड़ों बीमारियां थी जिनका असर बाद में देखा गया.
घटना के 33 साल बाद भी गैस हादसों के दुष्प्रभाव खत्म नहीं हो रहे हैं.
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